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साक्षात है विश्वास निभ पर ‎एक कवि यह कह उठा ‎च..

साक्षात है विश्वास निभ पर
‎एक कवि यह कह उठा
‎चल छोड़ राह राज कि
‎फिर उसने जंगल को चुना


‎वो कहता नहीं था मुख से कुछ
‎लिखता था वो कलम से कुछ
‎करता नए वो प्रपंच था
‎आकाश सा उसमें उमंग था

‎सिरहाने उसके सपने थे
‎बिलोई में सिमटे बैठे थे
‎वो जग खड़ा होता था
‎जब काटो से सपने चुभते थे


‎प्रकाश को होता नहीं
‎कभी भी भय रात्रि का
‎वही सुबह से शाम तक
‎आकर गया फिर आ गया


‎मै खोज बिन कहानी उसकी
‎कविता में मंगल पिरोने चला
‎कवि राज उसका नाम हो
‎कविताओं का साम्राज्य हो



‎मै उपासक उस कवि का
‎जो कभी ठहरा नही
‎तोड़ा उम्मीदों ने पर
‎उसने दम तोड़ा नहीं

‎यह कहानी उस कवि की
‎लिखता जीवन जो संगीत है ।
‎राजों का राज कवि राज है।
‎उसमें लगन और प्रीत है।





‎kripashukla 🤝🤝✍️✍️

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