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बंधन एक समझौता - नेक्स्ट चैप्टर रात नौ बजे से पहले..

बंधन एक समझौता - नेक्स्ट चैप्टर रात नौ बजे से पहले ........

सच में जिंदगी का कोई पता नहीं , जो इंसान एक पल पहले आंखों के सामने से गुजरा हो दूसरे पर उसका इस दूनिया से अस्तित्व ही खत्म हो गया
भरोसा करना मुश्किल हो जाता हैं
लगता हैं अगले ही पल वो इंसान फिर आंखों के सामने से गुजरेगा
उस एक पल में
यह मायने ही नहीं रखता कि
वो शख्स बुरा था या अच्छा
बस अंतिम क्षण , उस बंद पलकों और सफेद कपड़े से लिपटे मात्र शरीर को देख आंखों से आंसू टपक पड़ते हैं ....
आंसू इसलिए नहीं कि वो इंसान बहुत खास था
आंसू इसलिए भी कि अब सबकुछ उसके साथ ही बहा देना हैं
अग्नि की लपटों के साथ , सारा बैर वो देना हैं
उस राख को हाथ में लेकर सबकुछ भूला देना हैं
और यही सुखद विदाई होंगी क्योंकि
भले वो इंसान हमारे लिए अच्छा नहीं था
पर किसी के लिए तो था
कोई तो था , जिसकी जिंदगी सिर्फ
उसके इर्द-गिर्द थी
कोई तो था जो उसके बीना
जी नहीं सकता था ।
कोई तो था जो उसके लिए सांसें रोकने को तैयार था
समझे कुछ .....
तुम बस गलत तरीके से गलत
जगह उससे टकराये
बस फर्क इतना था कि तुम्हारे और उसके रिश्ते की भावनाएं अलग थी
आंसू के साथ सबकुछ बहा देना
उस भार को हल्का कर देता हैं
जो सीने पर दबा हैं
जब इंसान ही नहीं बचा तो
नफ़रत का कहां अस्तित्व
क्योंकि नफ़रत अक्सर शरीर से हो सकती हैं
आत्मा से नहीं

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