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*** कोहिनूर :- आपने भले ही मुझे पैसों से खरीदा है..

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कोहिनूर :- आपने भले ही मुझे पैसों से खरीदा है.। लेकिन आप मेरे स्वाभिमान की कीमत नहीं लगा सकते हैं

दास्तान :- मुझे वैसे भी तुम्हारे स्वाभिमान का अचार नहीं डालना है। और क्योंकि मैं तुम्हें खरीदा है इसीलिए मैं तुम्हारा मालिक हूं।

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कोठे पर पली-बढ़ी 17 साल की कोहिनूर, कभी उस दुनिया का हिस्सा नहीं थी।उसने हमेशा उड़ने के ख्वाब देखे थे। वो कीचड़ में खिला वो कमल थी, जो बाजार मे रहते हुए भी बाजार की रौनक का हिस्सा नहीं बनी थी। वो बाज़ार मे थी… पर बाजार की नहीं थी। लेकिन किस्मत को कब किसी की ख्वाहिशों की परवाह रही है? एक सौदे ने उसकी जिंदगी की दिशा ही मोड़ दी। जब उसे पर नजर पड़ती है एक रूड और एरोगेंट बिजनेसमैन दास्तान शाह की जो उम्र में कोहिनूर से 11 साल बढ़ा है। जिसे नफरत है हर बाजारु में चीज से। क्या होगा इस कहानी का अंजाम जब दो अलग दुनिया के लोग एक दूसरे के वजूद से टकराएंगे। कोहिनूर आजाद हो पाएगी या फिर से वह इस बदनाम गलियों में पहुंच जाएगी जहां उसकी किस्मत लिखी गई है। जाने के लिए पढ़िए
इश्क़ -ऐ-बाज़ार
(ये कहानी मेरी लाइब्रेरी मे है)

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